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चारित्र
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अपनी जनताके सुख दुःखका ध्यान पूरा-पूरा रखा जाता है; किन्तु दूसरे देशोंकी जनताके साथ वैसा ही व्यवहार नहीं किया जाता । बातें अच्छी-अच्छी कही जाती हैं किन्तु व्यवहार उनसे बिलकुल विपरीत किया जाता है । दूसरे देशोंपर अपना स्वत्व बनाये रखनेके लिए राजनैतिक गुटबन्दियाँ की जाती हैं। उनके विरुद्ध झूठा प्रचार करनेके लिए लाखों रुपया व्यय किया जाता है और यह कहा जाता है कि हम उनकी भलाई के लिए ही उनपर शासन कर रहे हैं। शासनतंत्र के द्वारा अपना अधिकार जमाकर उन देशोंके धन और जनका मनमाना उपयोग किया जाता है । यह सब हिंसा, असत्य और चोरी नहीं है तो क्या है ? यदि राष्ट्रोंका निर्माण अहिंसाके आधारपर किया जाये और असत्य व्यवहारको स्थान न दिया जाये तो राष्ट्रों में पारस्परिक अविश्वास और प्रतिहिंसाकी भावना देखनेको भी न मिले । समस्त राष्ट्रोंका एक विश्वसंघ हो, जिसमें सब राष्ट्र समान भ्रातृभावके आधारपर एक कुटुम्बके रूपमें सम्मिलित हों, न कोई किसीका शासक हो न शास्य हो । सब सबके दुःख और संकटका ध्यान रखें । सबके साथ सबका मैत्री - भाव हो । यदि सब राष्ट्र अपनी-अपनी नियतोंकी सफाई करके इस तरहसे एक सूत्र में बँधे तो न तो युद्ध हों और न युद्धके अभिशापोंसे जनताको असीम कष्ट ही भोगना पड़े ।
आज उत्पादनके ऊपर एक राष्ट्र या जातिका एकाधिकार होनेसे उसे अपने लिए दूर-दूरसे कच्चा माल मँगाना पड़ता है और तैयार हुए मालको खपानेके लिए बाजारोंकी भी खोज करनी पड़ती है और उनपर अपना काबू रखना पड़ता है। फिर भले ही वे बाजार दुनियाके किसी भी भागमें क्यों न हों। आज इसी पद्धतिके कारण दुनिया कराह रही है। दुनियाको इससे मुक्त करनेके लिये भी हमें अहिंसाका ही मार्ग अपनाना होगा । राष्ट्रों और जातियोंकी भलाईका स्थान विश्वकी भलाईको देना होगा । हमारा जीवन भौतिक दुनियाकी आवश्यकताओंके