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जैनधर्म जैनधर्मका आरम्भकाल' सुनिश्चित रीतिसे ईस्वी सन् से ८०० वर्ष पूर्व मान लिया गया है। किन्तु जहाँ अब कुछ विद्वान भगवान पार्श्वनाथको जैनधर्मका संस्थापक मानते हैं वहाँ कुछ विद्वान ऐसे भी हैं जो उससे पहले भी जैनधर्मका अस्तित्व मानते हैं। उदाहरणके लिए प्रमिद्ध जर्मन विद्वान् स्व० डा० हर्मन याकोबी और प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक सर राधाकृष्णन का मत उल्लेखनीय है। डा० याकोबी लिखते हैं__ 'इसमें कोई भी सबूत नहीं है कि पार्श्वनाथ जैनधर्मके संस्थापक थे। जैन परम्परा प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेवको जैनधर्मका संस्थापक माननेमें एक मत है। इस मान्यतामें ऐतिहासिक सत्यकी संभावना है।'
बुद्धके जन्मसे पहले अतिप्राचीन कालसे निर्ग्रन्थोंका अस्तित्व चला आता है।"
१ उत्तराध्ययन सूत्रके प्राक्कथनमें डा० चार्पेन्टर लिखते हैं-"हमें स्मरण रखना चाहिये कि जैनधर्म भ० महावीरसे प्राचीन है और महावीर के आदरणीय पूर्वज पार्श्वनाथ निश्चित रूपसे एक वास्तविक व्यक्तिके रूपमें वर्तमान थे। अतः जैनधर्मके मूल सिद्धान्त भ० महावीरसे बहुत पहले निर्धारित हो चुके थे। विवलोग्राफिया जैनकी प्रस्तावनामें, डा० गैरीनाट लिखते हैं-इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। जैन मान्यताके अनुसार वे सौ वर्ष तक जीवित रहे और महावीरसे २५० वर्ष पूर्व निर्वाणको प्राप्त हुए। अतः उनका कार्यकाल ईस्वी सन्से ८०० वर्ष पूर्व था। महावीरके माता-पिता पार्श्वनाथके धर्मको मानते थे।"
P 'There is nothing to prove that Parshva was the founder of Jainism. Jain tradition is unanimous in making Rishabha the first Tirthankara (as its founder) there may be something historical in the tradition which makes him the first Tirthankara.-Indian Antiquary Vol. TP. 163.