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जैन धर्म २. इतिहास
१. आरम्भ काल एक समय था जब जैनधर्मको बौद्धधर्मकी शाखा समझ लिया गया था। किन्तु अब वह भ्रान्ति दूर हो चुकी है और नई खोजोंके फलस्वरूप यह प्रमाणित हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मसे न केवल एक पृथक् और स्वतन्त्र धर्म है किन्तु उससे बहुत प्राचीन भी है। अब अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरको जैनधर्मका संस्थापक नहीं माना जाता और उनसे अढाई सौ वर्ष पहले होनेवाले भगवान पार्श्वनाथको एक ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार कर लिया गया है। इस तरह अब
१ इस भ्रान्तिको दूर करनेका श्रेय स्व० डा० हर्मान याकोबीको प्राप्त है। उन्होंने अपनी जैनसूत्रोंकी प्रस्तावनामें इसपर विस्तृत विचार किया है। वे लिखते हैं-"इस बातसे अब सब सहमत हैं कि नातपुत्त, जो महावीर अथवा वर्धमानके नामसे प्रसिद्ध हैं, बुद्धके समकालीन थे। बौद्ध-ग्रन्थोंमें मिलनेवाले उल्लेख हमारे इस विचारको दृढ़ करते हैं कि नातपुत्तसे पहले भी निर्ग्रन्थोंका, जो आज जैन अथवा आईतके नामसे अधिक प्रसिद्ध हैं, अस्तित्व था। जब बौद्धधर्म उत्पन्न हुआ तब निर्ग्रन्थोंका सम्प्रदाय एक बड़े सम्प्रदायके रूपमें गिना जाता होगा। बौद्ध पिटकोंमें कुछ निग्रन्थोंका बुद्ध और उसके शिष्योंके विरोधीके रूपमें और कुछका बुद्ध के अनुयायी बन जानेके रूपमें वर्णन आता है। उसके ऊपरसे हम उक्त बातका अनुमान कर सकते हैं । इसके विपरीत इन ग्रन्थोंमें किसी भी स्थानपर ऐसा कोई उल्लेख या सूचक वाक्य देखने में नहीं आता कि निर्ग्रन्थोंका सम्प्रदाय एक नवीन सम्प्रदाय है और नातपुत्त उसके संस्थापक हैं । इसके ऊपरसे हम अनुमान कर सकते हैं कि