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चारित्र
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हैं और इसलिये वे किसी भी हिंसकसे कम नहीं हैं। अतः जो अपनी आध्यात्मिक और लौकिक उन्नति करना चाहते हैं और चाहते हैं कि समाजमें इस तरहका अनाचार न फैले, उन्हें कामवासनाका केन्द्र केवल अपनी पत्नीको ही बनाना चाहिये और उसके सिवा संसारकी समस्त स्त्रियोंको अपनी माता बहिन या पुत्री समझना चाहिये तथा छोटे लड़कोंको अपना भाई समझकर उन्नत बनाना चाहिये ।
पत्नीको कामवासनाका केन्द्र बनानेसे कोई यह न समझें कि एकपत्नीव्रत या विवाह अनियंत्रित कामाचारका सर्टिफिकेट है । वह तो कामरोगको शान्त करने की औषधि है । स्तम्भक और उत्तेजक औषधियोंके द्वारा रोगको बढ़ाकर स्त्रीरूपी औषधि का सेवन करना तो औषधिके साथ अत्याचार करना है । ऐसे अत्याचारके फलस्वरूप हो आजकल विवाहित लड़के और लड़कियाँ क्षय रोगसे ग्रस्त होकर अकालमें ही कालके गाल में चले जाते ह । अतः अनियंत्रित कामाचार भी आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्यको चौपट कर देता है, इसलिये उससे भी बचना ही चाहिये ।
प्रत्येक सद्गृहस्थको नीचे लिखी बातोंसे बचनेकी सलाह दी गई है
१ - दुराचारिणी स्त्रियों से बचते रहो । २ – मुँह से अइलील बातें मत को । ३ - शक्तिसे अधिक काम सेवन मत करो । ४अप्राकृतिक मैथुनसे बचो । ५ - और दूसरोंके वैवाहिक सम्बन्धों के झगड़े में मत पड़ो। जो बातें पुरुषोंके लिए कही गई हैं वे ही स्त्रियोंके लिये भी हैं। स्त्रियोंका भी पर-पुरुष और अधिक कामाचार से बचना चाहिये, और 'अपनेको संयत रखनेकी चेष्टा करना चाहिये ।
५. परिग्रह परिमाणव्रत
स्त्री, पुत्र, घर, सोना आदि वस्तुओंमें 'ये मेरी हैं' इस तरह