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जैनधर्म
सत्यवादीको क्रोध, लालच और भयसे भी बचना चाहिये और हँसी मजाक के समय तो एकदम सावधान रहना चाहिये; क्योंकि हँसी मजाकमें झूठ बोलनेसे लाभ तो कुछ भी नहीं होता, उलटे झगड़ा टंटा बढ़ जानेका ही भय रहता है और आइन भी बिगड़ती है ।
३. अचौर्याणुव्रत
जो मनुष्य चुगनेक अभिप्रायसे दूसरेकी एक तृण मात्र वस्तुको भी लेता है या उठाकर दूसरे को दे देता है वह चोर है, और जो इस तरह की चोरीका त्याग कर देता है वह श्रावक अचौर्याणुत्रती कहा जाता है। किन्तु जो वस्तुएँ सर्वसाधारण के उपयोगके लिये हैं, जैसे, पानी मिट्टी वगैरह, उनको वह बिना किसीसे पूछे ले सकता है, इसी तरह जिस कुटुम्बीके धनका उत्तराधिकार उसे प्राप्त है, यदि वह मर जाये तो उसका धन भी ले सकता है । किन्तु उसकी जीवित अवस्थामें उनका धन छीन लेना चोरी ही कहा जायेगा । यदि कभी अपनी ही वस्तु में यह संदेह हो जाये कि ये मेरी है या नहीं ? तो जबतक वह सन्देह दूर न हो तब तक उस वस्तुको नहीं अपनाना चाहिये ।
तथा चोरीको बुरा समझकर छोड़ देनेवालोंको नीचे लिखे कार्य भी नहीं करना चाहिये ।
१ - किसी चोरको स्वयं या दूसरेके द्वारा चोरी करनेकी प्रेरणा करना और कराना या उसकी प्रशंसा करना । तथा कंची वगैरह चोरीके औजारोंको बेचना या चोरोंको अपनी ओर से देना । जैसे, 'तुम बेकार क्यों बैठे हो ? यदि तुम्हारे पास खानेको नहीं है तो मैं देता हूँ । यदि तुम्हारे चुराये हुए मालका कोई खरीदार नहीं है तो मैं उसे वेच दूँगा । इस प्रकारके वचनांसे चोरोंको चोरीमें लगाना भी एक तरह से चोरी ही है ।
२ - चोरीका माल खरीदना। जो लोग ऐसा काम करते हैं।