SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० जैनधर्म कर सो गया । उसमें बिच्छु गिर गया। अचानक लड़केको रात में प्यास लगी और उसने बिना देखे ही गिलास उठाकर मुँह से लगा लिया । बिच्छु उसके मुँह में चला गया और उसके हलक में चिपट कर डंक मारने लगा । लड़का तिलमिला उठा । बहुत उपचार किया गया मगर बिच्छू छुड़ाया न जा सका । आखिर लड़केने तड़प-तड़फ कर जान दे दी। ऐसी आकस्मिक दुर्घटनाओंसे शिक्षा लेना चाहिये और रात्रिभोजन तथा विना छने पानी से बचना चाहिये । धार्मिक विषयों में केवल धर्मकी ही मर्यादा नहीं है, उनमें व्यक्ति और समाजका सामूहिक हिन भी छिपा हुआ हैं । २. सत्याणुव्रत जो 'वस्तु जैसी देखी हो या सुनी हो, उसको वैसा ही न कहना लोकमें असत्य कहलाता है । परन्तु जैनधर्म में सत्य स्वयं कोई स्वतन्त्र व्रत नहीं है, किन्तु अहिंसा की रक्षा करना ही उसका लक्ष्य है । इसलिये जैनधर्म में जो वचन दूसरोंको कष्ट पहुँचाने के उद्देश्यसे बोला जाता है वह सत्य होनेपर भी असत्य कहलाता है । जैसे, काने पुरुपको काना कहना यद्यपि सत्य हैं, किन्तु यदि उससे उस मनुष्यके दिलको चोट पहुँचती हैं, या यदि उसे चोट पहुँचानेके विचारसे काना कहा जाता है। तो वह असत्य में ही गिना जायेगा । इसी दृष्टिसे यदि सत्य बोलने से किसीके प्राणोंपर संकट बन आता हो तो उस अवस्थामें सत्य बोलना भी बुरा कहा जायेगा । किन्तु ऐसे समय में असत्य बोलकर किसीके प्राणोंकी रक्षा करनेसे यदि उसके जुल्म और अत्याचारोंसे दूसरोंके प्राणोंपर संकट आने की संभावना हो तो उक्त नियममें अपवाद भी हो सकता हैं; क्योंकि यद्यपि व्यक्तिके जीवनकी रक्षा इष्ट है, किन्तु व्यक्तिके जुल्म और अत्याचारोंकी रक्षा किसी भी अवस्थामें इष्ट नहीं हैं । और अत्याचारोंके परिशोधके लिये व्यक्ति या व्यक्तियोंकी जान ले
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy