________________
चारित्र
१८९
पास ही छिपकली उनके शिकार के लिये लपकती रहती है, जो कभी-कभी दूधमें भी जा पड़ती है। एक बार इसी तरह के दूधको जमा दिया गया। सुबह को जिसने उस दूध दहीकी लम्मी पी उसीकी हालत खराब हो गई। पीछे दही के कुंडमें नीचे छिपकली मरी हुई पाई गई । यदि भोजनमें जूँ खा ली जाये तो जलोदर रोग हो जाता है और मकड़ी खा ली जाये तो कुष्ठ हो जाता है । तथा वैद्यकशास्त्र के अनुसार भी भोजन करनेके तीन घंटे के पश्चात जब खाये हुए भोजनका परिपाक होने लगे तब शय्यापर सोनेका विधान है । जो लोग रात्रिमें भोजन करते हैं वे प्रायः भोजन करके पड़ रहते हैं और विषयभोगमें लग जाते हैं। इससे स्वास्थ्यकी बड़ी हानि होती है। अतः नीरोगताकी दृष्टिसे भी दिन में ही भोजन करना हितकर है।
इसी तरह पानी भी हमेशा छानकर ही काम में लाना चाहिये | बिना छने पानी में यदि कीड़े हों तो वे पेटमें जाकर अनेक संक्रामक रोग पैदा करते हैं। जब हैजा वगैरह फैला होता है तब पानीको पकाकर पीनेकी सलाह दी जाती है । वास्तव में पका हुआ पानी कभी भी विकार नहीं करता । जैन साधु पका पानी ही काम में लाते हैं । किन्तु जैन गृहस्थोंको पके पानीका तो नियम नहीं कराया जाना, किन्तु छने पानीका नियम कराया जाता है । अनछने पानीसे छना पानी साफ होता हैं और छने पानीसे पका पानी शुद्ध होता है । आजकल तो जगह-जगह नल लगे हुए हैं । किन्तु नलींका पानी भी छानकर ही काम में लेना चाहिये; क्योंकि नलोंके पानी में भी जंग मिट्टी वगैरह मिली आती हैं, जो कपड़ेपर जम जाती है। एक बार तो साँपका बच्चा कहींसे नलमें आ गया था । अत: चाहे नलका पानी हो या कुँएका हो या नदीका हो, सबको छानकर ही काममें लेना चाहिये । इससे हम अनेक रोगों और कष्टों से बच जाते हैं। एक बार समाचा पत्रमें मुरादाबाद जिलेकी एक चटना प्रकाशित हुई थी । एक लड़का रानको खाटके नये पानी रख