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________________ सिद्धान्त १३९ १. सात तत्व यद्यपि द्रव्य छै हैं तथापि धर्मका सम्बन्ध केवल एक जीवद्रव्यसे ही है, क्योंकि उसीको दुःखोंसे छुड़ाकर उत्तम सुख प्राप्त करानेके लिये ही धर्मका उपदेश दिया गया है। और दुःखोंका मूलकारण उसी जीवके द्वारा बाँधे गये कर्म हैं, जो कि अजीव और अजीवों में भी पौद्गलिक हैं। अतः जब धर्मका लक्ष्य जीवको सब दुःखोंसे छुड़ाकर उत्तम सुख प्राप्त कराना है और दुःखोंका मूलकारण जीवके द्वारा बाँधे गये कर्म ही हैं तो दुःखांसे छूटनेके लिये निम्न बातोंकी जानकारी आवश्यक है १-उस वस्तुका क्या स्वरूप है, जिसको छुटकारा दिलाना है ? ____२-कर्मका क्या स्वरूप है ? क्योंकि जैसे ग्वर्णकारको म्वर्ण और उसमें मिले हुए द्रव्यकी ठीक ठीक पहचान होना आवश्यक है वैसे ही एक आत्मशोधकको भी आत्मा और उसके माथ मिले हुए परद्रव्यकी पहचान होना आवश्यक है, क्योंकि उसके बिना वह आत्माका शोधन ही नहीं कर सकता। ३-बह अजीव कर्म जीव तक कैसे पहुंचना है ? ४-और पहुँच कर कैसे जीवके माथ बँध जाता है ? इस प्रकार जीव और कर्मका म्वरूप और कर्माका जीवनक आगमन और वन्धनका ज्ञान हो जानेसे मंमारक कारणांका पूरा ज्ञान हो जाता है । अब उससे छुटकारा पाने के लिये कुछ वाने जानना आवश्यक हैं ५-नवीन कर्मवन्धको रोकनेका क्या उपाय है ? ६-पुराने बँध हुए कर्माको कैसे नष्ट किया जा सकता है ? ७-इन उपायोंसे जो मुक्ति प्राप्त होगी वह क्या वस्नु है ? इन सान बातोंका ज्ञान होना प्रत्येक मुमुक्षक लिये आवश्यक है, इन्हींको सात तत्त्व कहते हैं। पोद्गलिक कर्मीक संयोगसे ही यह जीव बन्धनमें है और सब प्रकारके कष्ट भोगता है । इस
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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