________________
सिद्धान्त है, क्योंकि यदि ऐसा न माना जायेगा तो मथुरा , काशी और कलकत्ता एक प्रदेशवर्ती हो जायेंगे। चूंकि ये भिन्न-भिन्न प्रदेशवर्ती हैं अतः सिद्ध है कि आकाश बहुप्रदेशी हैं। बहुप्रदेशी होनेपर भी न तो आकाशका विनाश ही होता है और न वह अनित्य ही है, उसी तरह आत्माको भी जानना चाहिये।
दूसरी आपत्ति यह की जाती है कि यदि आत्मा शरीरप्रमाण है तो बालकके शरीर प्रमाणसे युवा शरीररूप वह कैसे बदल जाता है ? यदि बालकके शरीर प्रमाणको छोड़कर वह युवाके शरीर प्रमाण होता है तो शरीर की तरह आत्मा भी अनित्य ठहरता है । यदि बालक के शरीर प्रमाणको छोड़े बिना आत्मा युवा शरीररूप होता है तो यह संभव नहीं है। क्योंकि एक परिमाणको छोड़े विना दूसरा परिमाण नहीं हो सकता। इसके सिवा यदि जीव शरीरपरिमाण है तो शरीरके एकाध अंशके कट जाने पर आत्माके भी अमुक भागकी हानि माननी पड़ती है । इसका उत्तर यह है कि आत्मा वालकके शरीरपरिमाणको छोड़कर ही युवा शरीरके परिमाणको धारण करता है। जैसे सर्प अपने फण वगैरहको फैलाकर बड़ा कर लेता है वैसे ही आत्मा भी संकोच-विस्तार गुणके कारण भिन्न-भिन्न समयमें भिन्न-भिन्न आकारवाला हो जाता है । इस अपेक्षासे आत्माको अनित्य भी कहा जा सकता है। किन्तु द्रव्यदृष्टिमे तो आत्मा नित्य ही है। शरीरके खण्डित हो जानेपर भी आत्मा खण्डित नहीं होता किन्तु शरीर के खण्डित हुए भागमें आत्माके प्रदेश न माने जायँ नो शरीरमे कटकर अलग हुए भागमें जो कंचन देखा जाता है उसका कोई दूसरा कारण दृष्टिगोचर नहीं होता; क्योंकि उस भागमें दूसरी आत्मा तो नहीं हो सकती, और बिना आत्माके परिस्पन्द नहीं हो सकता; क्योंकि कुछ देरके बाद आत्मप्रदेश सकुच जाते हैं तो कटे भागमें क्रिया नहीं रहती। अतः शरीरके दो भाग हो जानेपर भी आत्माके दो