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विषय प्रवेश भूत तत्त्वज्ञानको खोजनेका भी गम्भीर और तलस्पर्शी प्रयत्न किया। उन्होंने वर्गस्वार्थके पोषणके लिये चारों तरफसे सिमटकर एक कठोर शिकंजेमें ढलनेवाली कुत्सित विचारधाराको रोककर कहा-ठहरो, जरा इस कल्पित शिकंजेके सांचेसे निकलकर स्वतंत्र विचरो, और देखो कि जगतका हित किसमे है ? क्या जगतका स्वरूप यही है ? क्या जीवनका उच्चतम लक्ष्य यही हो सकता है ? और इसी एक रोकने सदियोंकी जड़ीभूत विचारधाराको झकझोरकर जगा दिया, और उसे मानवकल्याणकी दिशामें तथा जगतके विपरिवर्तनमान स्वतन्त्र स्वरूपकी ओर मोड़ दिया । यह दर्शन और संस्कृतिक परिवर्तनका युग था । विहारकी पवित्र भूमिपर भगवान् महावीर और बुद्ध इन दो युगदर्शियोंने मानवको दृष्टि भोगसे योगकी और तथा वर्गस्वार्थसे प्राणिमात्रके कल्याणकी ओर फेरी । उस युगमें जिस तत्त्वज्ञान और दर्शनका निर्माण हुआ, वह आजके युगमें भी उसी तरह आवश्यक उपयोगी बना हुआ है।