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________________ १२ जैनदर्शन श्रुतकी धारा दिगम्बर परम्परामें सुरक्षित है और दिगम्बर परम्परा जिस अङ्गश्रु तका लोप मानती है, उसका संकलन श्वेताम्बर परम्परामें प्रचलित है। श्रुतविच्छेदका मूल कारण : इस श्रुत-विच्छेदका एक ही कारण है-वस्त्र । महावीर स्वयं निर्वस्त्र परम निर्ग्रन्थ थे, यह दोनों परम्पराओंको मान्य है। उनके अचेलक-धर्मकी सङ्गति आपवादिक वस्त्रको औत्सर्गिक मानकर नहीं बैठायी जा सकती। जिनकल्प आदर्श मार्ग था, इसकी स्वीकृति श्वेताम्बर परम्परा मान्य दशवैकालिक, आचाराङ्ग आदिमें होनेपर भी जब किसी भी कारणसे एक बार आपवादिक वस्त्र घुस गया तो उसका निकलना कठिन हो गया । जम्बूस्वामीके बाद श्वेताम्बर परम्परा द्वारा जिनकल्पका उच्छेद माननेसे तो दिगम्बरश्वेताम्बर मतभेदको पूरा-पूरा बल मिला है। इस मतभेदके कारण श्वेताम्बर परम्परामें वस्त्रके साथ-ही-साथ उपधियोंकी संख्या चौदह तक हो गई। यह वस्त्र ही श्रुतविच्छेदका मूल कारण हुआ। सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० बेचरदासजीने अपनी 'जैन साहित्य में विकार' पुस्तक ( पृष्ठ ४० ) में ठीक ही लिखा है कि-"किसी वैद्यने संग्रहणीके रोगीको दवाके रूपमें अफीम सेवन करनेकी सलाह दी थी, किन्तु रोग दूर होनेपर भी जैसे उसे अफ़ीमकी लत पड़ जाती है और वह उसे नहीं छोड़ना चाहता वैसी ही दशा इस आपवादिक वस्त्र की हुई।" ___ यह निश्चित है कि भगवान् महावीरको कुलाम्नायसे अपने पूर्व तीर्थकर पार्श्वनाथको आचार-परम्परा प्राप्त थी। यदि पार्श्वनाथ स्वयं सचेल होते और उनकी परम्परामें साधुओंके लिये वस्त्रको स्वीकृति होती तो महावीर स्वयं न तो नग्न दिगम्बर रहकर साधना करते और न १."मण परमोहिपुलाए आहारा खवग उवसमे कप्पे । संजमतिय केवलि सिझणा य जंबुम्मि बुच्छिण्णा ॥२६९३॥”–विशेषा० ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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