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अनुमानप्रमाणमीमांसा
३३१ परम्परासे संभावित हेतु-कार्यके कार्य, कारणके कारण, कारणके विरोधी आदि हेतुओका इन्हीमे अन्तर्भाव हो जाता है।
अदृश्यानुपलब्धि भी अभावसाधिका :
बौद्ध' दृश्यानुपलब्धिसे ही अभावकी मिद्धि मानते है। दृश्यसे उनका तात्पर्य ऐसी वस्तुसे है कि जो वस्तु सूक्ष्म, अन्तरित या दूरवर्ती न हो तथा जो प्रत्यक्षका विषय हो सकती हो। ऐसी वस्तु उपलब्धिके समस्त कारण मिलनेपर भी यदि उपलब्ध न हो तो उसका अभाव समझना चाहिए । सूक्ष्म आदि विप्रकृष्ट पदार्थोमे हम लोगोके प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोकी निवृत्ति होनेपर भी उनका अभाव नहीं होता। प्रमाणको प्रवृत्तिसे प्रमेयका सद्भाव तो जाना जाता है, पर प्रमाणकी निवृत्तिसे प्रमेयका अभाव नही किया सकता। अत विप्रकृष्ट विषयोकी अनुपलब्धि सशयहेतु होनेसे अभावमाधक नही हो सकती। वस्तुके दृश्यत्वका इतना ही अर्थ है कि उसके उपलम्भ करनेवाले समस्त करणोकी ममग्रता हो और वस्तुमे एक विशेष स्वभाव हो। घट और भूतल एकज्ञानससर्गी ये, जितने कारणोसे भूतल दिखाई देता है उतने ही करणोसे घडा। अत जब शुद्ध भूतल दिखाई दे रहा है तब यह तो मानना ही होगा कि वहाँ भतलकी उपलब्धिकी वह सब सामग्री विद्यमान है जिससे घडा यदि होता तो वह भी अवश्य दिख जाता। तात्पर्य यह कि एकज्ञानससर्गी पदार्थान्तरकी उपलब्धि इस बातका प्रमाण है कि वहाँ उपलब्धिको समस्त सामग्री है । घटमे उस सामग्रीके द्वारा प्रत्यक्ष होनेका स्वभाव भी है, क्योकि यदि वहाँ घडा लाया जाय तो उसी सामग्रीसे वह अवश्य दिख जायगा। पिशाचादि या परमाणु आदि पदार्थोमे वह स्वभावविशेष नही है, अत सामग्रीको पूर्णता रहने पर भी उनका प्रत्यक्ष नही हो पाता। यहाँ सामग्रीको पूर्णताका
१. न्यायविन्दु २।२८-३०, ४६ । • न्यायबिन्दु २।४८-४९ ।