________________
अनुमानप्रमाणमीमांसा
३२३ त्प्रतिपक्षत्वका विवक्षितैकसंख्यत्व शब्दसे निर्देश है। असत्प्रतिपक्ष अर्थात् जिसका कोई प्रतिपक्षी हेतु विद्यमान न हो, जो अप्रतिद्वन्द्वी हो और विवक्षितक-संख्यत्वका भी यही अर्थ है कि जिसकी एक संख्या हो अर्थात् जो अकेला हो, जिसका कोई प्रतिपक्षी न हो। षड्लक्षण हेतुमे ज्ञातत्वरूपके पृथक् कहनेकी कोई आवश्यकता नही है; क्योकि लिग अज्ञात होकर साध्यका ज्ञान करा ही नहीं सकता। वह न केवल ज्ञात ही हो, किन्तु उसे अपने साध्यके साथ अविनाभावीरूपमे निश्चित भी होना चाहिये। तात्पर्य यह कि एक अविनाभावके होनेपर शेष रूप या तो निरर्थक है या उस अविनाभावके विस्तार मात्र है। बाधा' और अविनाभावका विरोध है। यदि हेतु अपने साध्यके साथ अविनाभाव रखता है, तो बाधा कैसी ? और यदि बाधा है, तो अविनाभाव कैसा ? इनमे केवल एक "विपक्षव्यावृत्ति' रूप ही ऐसा है, जो हेतुका असाधारण लक्षण हो सकता है । इसीका नाम अविनाभाव है।
नैयायिक अन्वयव्यतिरेकी, केवलान्वयी और केवलव्यतिरेकी इस तरह तीन प्रकारके हेतु मानते है । 'शब्द अनित्य है, क्योकि वह कृतक है' इम अनुमानमे कृतकत्व हेतु सपक्षभूत अनित्य घटमे पाया जाता है और आकाश आदि नित्य विपक्षोसे व्याबृत्त रहता है और पक्षमे इसका रहना निश्चित है, अतः यह अन्वयव्यतिरेकी है । इसमे पञ्चरूपता विद्यमान है । 'अदृष्ट आदि किसीके प्रत्यक्ष है, क्योकि वे अनुमेय है' यहाँ अनुमेयत्व हेतु पक्षभूत अदृष्टादिमे पाया जाता है, सपक्ष घटमे भी इसकी वृत्ति है, इसलिए पक्षधर्मत्व और सपक्षसत्त्व तो है, पर विपक्ष-व्यावृत्ति नही है; क्योकि जगतके समस्त पदार्थ पक्ष और सपक्षके अन्तर्गत आ गये है। जब कोई विपक्ष है ही नही तब व्यावृत्ति किससे हो? इस केवला. न्वयी हेतुमे विपक्षव्यावृत्तिके सिवाय अन्य चार रूप पाये जाते है ।
-
१. 'बाधाविनाभावयोविरोधात् ।' -हेतुबि० परि० ४ ।