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जैनदर्शन
सकता, अन्यथा अनुभूत अग्निको विषय करनेवाला अनुमान भी प्रमाण नहीं हो सकेगा। अतः स्मृति प्रमाण है; क्योंकि वह स्वविषयमें अविसंवादिनी है। २. प्रत्यभिज्ञान :
वर्तमान प्रत्यक्ष और अतीत स्मरणसे उत्पन्न होनेवाला संकलनज्ञान प्रत्यभिज्ञान' कहलाता है। यह संकलन एकत्व, सादृश्य, वैसादृश्य, प्रतियोगी, आपेक्षिक आदि अनेक प्रकारका होता है। वर्तमानका प्रत्यक्ष करके उसीके अतीतका स्मरण होनेपर 'यह वही है' इस प्रकार का जो मानसिक एकत्वसंकलन होता है, वह एकत्वप्रत्यभिज्ञान है । इसी तरह 'गाय सरीखा गवय होता है' इस वाक्यको सुनकर कोई व्यक्ति वनमें जाता है। और सामने गाय सरीखे पशुको देखकर उस वाक्यका स्मरण करता है, और फिर मनमें निश्चय करता है कि यह गवय है । इस प्रकारका सादृश्यविषयक संकलन सादृश्यप्रत्यभिज्ञान है। 'गायसे विलक्षण भैस होती है' इस प्रकारके वाक्यको सुनकर जिस बाड़ेमें गाय और भैंस दोनों मौजूद है, वहाँ जानेवाला मनुष्य गायसे विलक्षण पशुको देखकर उक्त वाक्यको स्मरण करता है और निश्चय करता है कि यह भैंस है। यह वैलक्षण्यविपयक संकलन वैसदृश्यप्रत्यभिज्ञान है । इसी प्रकार अपने समीपवर्ती मकानके प्रत्यक्षके बाद दूरवर्ती पर्वतको देखनेपर पूर्वका स्मरण करके जो 'यह इससे दूर है' इस प्रकार आपेक्षिक ज्ञान होता है वह प्रातियोगिक प्रत्यभिज्ञान है । 'शाखादिवाला वृक्ष होता है', “एक सींगवाला गेंडा होता है', 'छह पैरवाला भ्रमर होता है' इत्यादि परिचायक-शब्दोंको सुनकर व्यक्तिको उन-उन पदार्थोके देखनेपर और पूर्वोक्त परिचयवाक्योंको स्मरण कर जो ‘यह वृक्ष है, यह गेंडा है'
१. 'दर्शनस्मरणकारणकं संकलनं प्रत्यभिज्ञानम् । तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रति
योगीत्यादि ।'-परीक्षामुख ३२५ ।