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मोक्षतत्व निरूपण
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“हाँ महाराज, निर्वाण निर्गुण है, किसीने इसे बनाया नहीं है । निर्वाणके साथ उत्पन्न होने और न उत्पन्न होनेका प्रश्न ही नहीं उठता । उत्पन्न किया जा सकता है अथवा नहीं, इसका भी प्रश्न नहीं आता । निर्वाण वर्तमान, भूत और भविष्यत तीनों कालोंके परे है | निर्वाण न आँखसे देखा जा सकता है, न कानसे सुना जा सकता है, न नाकसे सूँघा जा सकता है, न जीभसे चखा जा सकता है और न शरीरसे छुआ जा सकता है | निर्वाण मनसे जाना जा सकता है । अर्हत् पदको पाकर भिक्षु विशुद्ध, प्रणीत, ऋजु तथा आवरणों और मासारिक कामोसे रहित मनसे निर्वाणको देखता है ।" ( पृ० ३३२ )
"निर्वाण में सुख ही सुख है, दुःखका लेश भी नहीं रहता " ( पृ० ३८६ )
"महाराज, निर्वाणमे ऐसी कोई भी बात नही है, उपमाएँ दिखा, व्याख्या कर, तर्क और कारणके साथ निर्वाणके रूप, स्थान, काल या डीलडौल नहीं दिखाये जा सकते ।" ( पृ० ३८८ )
" महाराज जिस तरह कमल पानीसे सर्वथा अलिप्त रहता है उसी तरह निर्वाण सभी क्लेशोसे अलिप्त रहता है । निर्वाण भी लोगांकी कामतृष्णा, भवतृष्णा और विभवतृष्णाकी प्यामको दूर कर देता है । " ( पृ०३९१)
"निर्वाण दवाकी तरह क्लेशरूपी विपको शान्त करता है, दुःखरूपी रोगोंका अन्त करता है और अमृतरूप है । वह महासमुद्रकी तरह अपरम्पार है । वह आकाशकी तरह न पैदा होता है, न पुराना होता है, न मरता है, न आवागमन करता है, दुर्ज्ञेय है, चोरोंस नहीं चुराया जा सकता, किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहता, स्वच्छन्द खुला और अनन्त । वह मणिरत्नकी तरह सारी इच्छाओंको पूरा कर देता है, मनोहर है, प्रकाशमान है और बड़े कामका होता है । वह लाल चन्दनकी तरह दुर्लभ, निराली गंधवाला और सज्जनों द्वारा प्रशंसित है । वह पहाड़की चोटी की तरह अत्यन्त ही ऊँचा, अचल, अगम्य, राग-द्वेषरहित और क्लेश