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जीवद्रव्य विवेचन
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यह शक्यता कारणमें कार्यके मद्भावके मिवाय और क्या हो सकती है ? और यदि कारणमें कार्यका तादात्म्य स्वीकार न किया जाय तो संमारमे कोई किमीका कारण नहीं हो सकता। कार्यकारणभाव स्वयं ही कारणमें किसी रूपसे कार्यका मभाव मिद्ध कर देता है। गभी कार्य प्रलयकालमें किसी एक कारणमे लीन हो जाते है। वे जिसमे लीन होते है, उनमे उनका सद्भाव किसी रूपसे रहा आता है । ये कारणोमे कार्यको सत्ता शक्तिरूपसे मानते है, अभिव्यक्ति रूपमे नहीं। इनका कारणतत्त्व एक प्रधान-प्रकृति है, उसीसे संसारके ममस्त कार्यभेद उत्पन्न हो जाते है। नैयायिकका असत्कायवाद :
नैयायिकादि अमत्कार्यवादी है । इनका यह मतलब है कि जो स्कन्ध परमाणुओके संयोगमे उत्पन्न होता है वह एक नया ही अवयवी द्रव्य । उन परमाणओके संगोगके विग्वर जाने पर वह नष्ट हो जाता है। उत्पत्ति के पहले उस अवयवी द्रव्यकी कोई मत्ता नही थी। यदि कार्यकी सत्ता कारणमे स्वीकृत हो तो कार्यको अपने आकार-प्रकारमें उसी समय मिलना चाहिए था, पर ऐमा देवा नही जाता । अवयव द्रव्य और अवयवी द्रव्य यद्यपि भिन्न द्रव्य है, किन्तु उनका क्षेत्र पृथक् नहीं है, वे अयुतमिद्ध है। कहीं भी अवयवीकी उपलब्धि यदि होती है, तो वह केवल अवयवोंमें हो । अवयवोमे भिन्न अर्थात् अवयवोमे पृथक् अवयवीको जुदा निकालकर नहीं दिखाया जा मकता । बौद्धोंका असत्कार्यवादः
बौद्ध प्रतिक्षण नया उत्पाद मानते है । उनकी दृष्टिमे पूर्व और उत्तर के साथ वर्तमान का कोई सम्बन्ध नहीं है । जिम कालमे जहाँ जो है, वह वहीं और उमी कालमे नष्ट हो जाता है । नदृशता हो कार्य-कारणभाव आदि व्यवहारोकी नियामिका है। वस्तुतः दो क्षणोंका परम्पर कोई वास्तविक सम्बन्ध नहीं है।