SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ जैनदर्शन कितनी-सी शक्ति ! वह कहाँ तक इन द्रव्योंके परिणमनोंको प्रभावित कर सकता है ? हाँ, जहाँ तक अपनी सूझ-बूझ और शक्तिके अनुसार वह यन्त्रोंके द्वारा इन्हें प्रभावित और नियन्त्रित कर सकता था, वहाँ तक उसने किया भी है। पुद्गलका नियन्त्रण पौद्गलिक साधनोंसे ही हो सकता है और वे साधन भी परिणमनशील हैं । अतः हमें द्रव्यकी मूल स्थिति आधारसे ही तत्त्वविचार करना चाहिये और विश्वव्यव - स्थाका आधार ढूँढ़ना चाहिए । छाया पुद्गलकी ही पर्याय है : सूर्य आदि प्रकाशयुक्त द्रव्यके निमित्तसे आस-पास के पुद्गलस्कन्ध भासुररूपको धारण कर प्रकाशस्कन्ध बन जाते हैं । इसी प्रकाशको जितनी जगह कोई स्थूल स्कन्ध यदि रोक लेता है तो उतनी जगहके स्कन्ध काले रूपको धारण कर लेते हैं, यही छाया या अन्धकार है । ये सभी पुद्गल द्रव्यके खेल हैं । केवल मायाको आंखमिचौनी नहीं है और न 'एकोऽहं बहु स्याम्' की लीला | ये तो ठोस वजनदार परमार्थसत् पुद्गल परमाणुओंकी अविराम गति और परिणतिके वास्तविक दृश्य हैं । यह आँख मूँदकर की जानेवाली भावना नहीं है, किन्तु प्रयोगशालामें रासायनिक प्रक्रियासे किये जानेवाले प्रयोगसिद्ध पदार्थ हैं । यद्यपि पुद्गलाणुओंमें समान अनन्त शक्ति है, फिर भी विभिन्न स्कन्धोंमें जाकर उनकी शक्तियोंके भी जुदे - जुदे अनन्त भेद हो जाते हैं । जैसे प्रत्येक परमाणु में सामान्यतः मादकशक्ति होने पर भी उसकी प्रकटताकी योग्यता महुवा, दाख और कोदों आदिके स्कन्धों में ही साक्षात् है, सो भी अमुक जलादिके रासायनिक मिश्रणसे । ये पर्याययोग्यताएँ कहलाती हैं, जो उन उन स्थूल पर्यायोंमें प्रकट होती हैं । और इन स्थूल पर्यायों के घटक सूक्ष्म स्कन्ध भी अपनी उस अवस्थामें विशिष्ट शक्तिको धारण करते हैं ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy