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________________ लोकव्यवस्था १११ पिण्डमें शामिल है तो वह साक्षात् घट ही बन सकता है, पट नहीं। सामान्य स्वभाव होनेपर भी उन द्रव्योंकी स्थूल पर्यायोंमें साक्षात् विकसनेयोग्य कुछ नियत योग्यताएँ होती हैं। यह नियतिपन समय और परिस्थितिके अनुसार बदलता रहता है । यद्यपि यह पुरानी कहावत प्रसिद्ध है कि 'घड़ा मिट्टीसे बनता है बालू से नहीं ।' किन्तु आजके वैज्ञानिक युगमें बालूको काँचको भट्टीमें पकाकर उससे अधिक सुन्दर और पारदर्शी घड़ा बनने लगा है। ___अतः द्रव्ययोग्यताएं सर्वथा नियत होने पर भी, पर्याययोग्यताओंकी नियतता परिस्थितिके ऊपर निर्भर करती है। जगतमें समस्त कार्योंके परिस्थितिभेदसे अनन्त कार्यकारणभाव हैं और उन कार्यकारणपरंपराओंके अनुसार ही प्रत्येक कार्य उत्पन्न होता है। अतः अपने अज्ञानके कारण किसी भी कार्यको यदृच्छा-अटकलपच्चू कहना अतिसाहस है। पुरुष उपादान होकर केवल अपने ही गुण और अपनी ही पर्यायोंका कारण बन सकता है, उन ही रूपसे परिणमन कर सकता है, अन्य रूपसे कदापि नहीं। एक द्रव्य दूसरे किसी सजातीय या विजातीय द्रव्यमें केवल निमित्त ही बन सकता है, उयादार कदापि नहीं, यह एक सुनिश्चित मौलिक द्रव्यसिद्धान्त है । संसारके अनन्त कार्योका बहुभाग अपने परिणमनमें किसी चेतन-प्रयत्नकी आवश्यकता नहीं रखता। जब सूर्य निकलता है तो उसके संपर्कसे असंख्य जलकण भाप बनते हैं, और क्रमशः मेघोंकी सृष्टि होती है, फिर सर्दी-गर्मीका निमित्त पाकर जल बरसता है। इस तरह प्रकृतिनटीके रंगमंचपर अनन्त कार्य प्रतिसमय अपने स्वाभाविक परिणामी स्वभावके अनुसार उत्पन्न होते और नष्ट होते रहते हैं । उनका अपना द्रव्यगत ध्रौव्य ही उन्हें क्रमभंग करनेसे रोकता है अर्थात् वे अपने द्रव्यगत स्वभावके कारण अपनी ही धारामें स्वयं नियन्त्रित हैं-उन्हें किसी दूसरे द्रव्यके नियन्त्रणकी न कोई अपेक्षा है और न आवश्यकता ही। यदि कोई चेतनद्रव्य भी किसी द्रव्यको कारणसामग्रीमें सम्मिलित हो जाता
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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