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जैनदर्शन
पंडित दौड़कर आवागमनमे पड़कर दुखका अन्त करेंगे ।" ( दर्शनदिग्दर्शन पृ० ४८८-८९ ) । भगवतीसूत्र ( १५ वॉ शतक ) मे भी गोशालकको नियतिवादी ही बताया है । इसी नियतिवादका रूप आज भी 'जो होना है वह होगा ही इस भवितव्यताके रूपमे गहराईके साथ प्रचलित है ।
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नियतिवादका एक आध्यात्मिक रूप और निकला है । इसके अनुसार प्रत्येक द्रव्यको प्रतिसमयकी पर्याय सुनिश्चित है । जिस समय जो पर्याय होनी है वह अपने नियत स्वभावके कारण होगी हो, उसमे प्रयत्न निरर्थक है । उपादानशक्ति से हो वह पर्याय प्रकट हो जाती है, वहाँ निमित्तकी उपस्थिति स्वयमेव होती है, उसके मिलानेकी आवश्यकता नही । इनके मतसे पेट्रोलसे मोटर नही चलती, किन्तु मोटरको चलना ही है और पेट्रोलको जलना ही है । और यह सब प्रचारित हो रहा है द्रव्यके शुद्ध स्वभावके नामपर । इसके भीतर भूमिका यह जमाई जाती है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ नही कर सकता सब अपने आप नियतिचक्रवश परिणमन करते है । जिसको जहाँ जिस रूपमे निमित्त बनना है उस समय उसकी वहाँ उपस्थिति हो ही जायगी । इस नियतिवादसे पदार्थोके स्वभाव और परिणमनका आश्रय लेकर भी उनका प्रतिक्षणका अनन्तकाल तकका कार्यक्रम बना दिया गया है, जिसपर चलनेको हर पदार्थ बाध्य है । किसीको कुछ नया करनेका नही है । इस तरह नियतिवादियोके विविध रूप विभिन्न समयोमे हुए है । इन्होने सदा पुरुषार्थको रेड मारी है और मनुष्यको भाग्यके चक्करमे डाला है ।
किन्तु जब हम द्रव्यके स्वरूप और उसकी उपादान और निमित्तमूलक कार्यकारणव्यवस्थापर ध्यान देते है तो इसका खोखलापन प्रकट हो
१. देखो, श्रीकानजीस्वामी लिखित 'वस्तुविज्ञानसार' आदि पुस्तके |