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लोकव्यवस्था भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्ने नाभाव्यं
भवति न भाविनोऽस्ति नाशः॥" अर्थात्-मनुष्योंको नियतिके कारण जो भी शुभ और अशुभ प्राप्त होना है वह अवश्य ही होगा। प्राणी कितना भी प्रयत्न कर ले, पर जो नहीं होना है वह नहीं ही होगा, और जो होना है उसे कोई रोक नहीं सकता। सब जीवोंका सब कुछ नियत है, वह अपनी गतिसे होगा ही।
मज्झिमनिकाय ( २।३।६।) तथा बुद्धचर्या ( सामञ्जफलसुत्त पृ० ४६२-६३ ) में अकर्मण्यतावादी मक्खलि गोशालके नियतिचक्रका इस प्रकार वर्णन मिलता है-"प्राणियोंके क्लेशके लिये कोई हेतु नहीं, प्रत्यय नहीं । बिना हेतु, बिना प्रत्यय ही प्राणी क्लेश पाते हैं। प्राणियोंकी शुद्धिका कोई हेतु नहीं, प्रत्यय नहीं है। बिना प्रत्यय ही प्राणी विशुद्ध होते हैं । न आत्मकार है, न परकार है, न पुरुषकार है, न बल है, न वीर्य है, न पुरुषका पराक्रम है । सभी सत्त्व, सभी प्राणी, सभी भूत. सभी जीव अवश है, बल-वीर्य-रहित हैं। नियतिसे निर्मित अवस्थामें परणत होकर छह ही अभिजातियोंमें सुख-दुःख अनुभव करते हैं। वहाँ यह नहीं है कि इस शील-व्रतसे, इस तप-ब्रह्मचर्यसे मैं अपरिपक्व कर्मको परिपक्व करूंगा, परिपक्व कर्मको भोगकर अन्त करूंगा। सुख और दुःख द्रोणसे नपे हुए हैं । संसारमें घटना-बढ़ना, उत्कर्ष-अपकर्ष नहीं होता। जैसे कि सूतकी गोली फेंकने पर खुलती हुई गिर पड़ती है, वैसे ही मूर्ख और
१. उद्धृत-सूत्रकृताङ्गटीका ११।२ । -लोकतत्त्व अ० २९ । २. “तथा चोक्तम्
"नियतेनैव रूपेण सर्वे भावा भवन्ति यत् । ततो नियतिजा येते तत्स्वरूपानुवेधतः ॥ यद्यदैव यतो यावत् तत्तदेव ततस्तथा। नियतं जायते न्यायात् क एनां बाधितु क्षमः ॥"
-नन्दोसू० टी०।