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जैनागमों से स्याद्वाद
एए ण पुव्व भावपन्नवण पडुच्च पुढविजीवसरीर तो पच्छा, सत्थातीया जाव अगणिजीवसरीराति वत्तव्वं सिया। अहरण भंते ! अही अहिज्झामे चम्मे चम्मज्झामे र मे २ सिंगे २ खुरे २ नखे २ एते ण किमरीराति वत्तव्यं सिया ?, गोयमा ! अट्ठी चं मे रोमे सिंगे खरे नहे एए ण तसपाणजीवसरीरा अहिज्झामे चम्मझामे रोमज्झामे सिग० खर० णहज्झामे एए ण पुयभावपण्णवण पडुच्च तसपाणजीवसरीरा तो पच्छो सत्थातीया जाव अगणिजीवत्ति वत्तव्य सिया । अह भंते ! इंगाले छारिए भुसे गोमए एस ण किंसरीरो वत्तव्वं सियो ? गोयमा । इंगाले छारिए भुसे गोमए एए ण पुव्वभावपएणवण पडुच्च एगिदियजीवमरीरम्पयोगपरिणमियावि जाव पंचिंदियजीवसरीरप्पयोगपरिणामियावि तो पच्छा सत्थातिया जाव गणिजीवसरीराति वत्तव्य सिया ॥
-श्री भगवती सूत्र ५।२।१८१ ॥
टीका-'अहे' त्यादि, ए ण' ति एतानि णमित्यलकारे _ 'किंसरीर'त्ति केपा शरीराणि किशरीराणि ? 'सुराए य जे घणे'त्ति