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व्याख्या कोष ]
वितर्क सविचारे, २ एकत्व वितर्क अविचार, ३ सूक्ष्म क्रिया- अप्रतिपाति मोर ४ व्युपरत क्रिया अनिवृत्तिं ।
८- शुभ - ध्यान
श्र ेष्ठ, आदर्श, सात्विक विचार प्रवाह को शुभ ध्यान कहते हैं । धर्मव्यान और शुक्ल - ध्यान को " शुभ ध्यान" के अन्तर्गत गिना जा सकता है ।
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९ - शुभ- योग
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मन, वचन, और काया की अच्छी प्रवृत्ति को, निर्दोष भाषा-शैली को और सात्विक विचारो को ही शुभ योग कहते है । मन शुभ योग, वचन शुभ योग, और काया शुभ योग, ये तीन इसके भेद कहे जाते है ! शुभ योग का विस्तृत और विकसित रूप ही पाच समिति एव तीन गुप्ति है
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१० - शुभ - लेश्या
“लेश्या” का स्वरूप पहले लिखा जा चुका है । छ लेश्याओ में से कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्याऐं तो अशुभ है और तेजो, पद्म आर शुक्ल ये तीन शुभ लेश्याऐं कही जाती है ।
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१ - षट् - काय
पृथ्वी काय, अप काय, तेउ काय, वायु काय, वनस्पति काय और स काय, ये षट्–काय कहलाते है । प्रथम से पाँचवें तक एकेन्द्रिय जीव ही है । इनके केवल शरीर ही होता है । त्रस काय में दो इन्द्रिय जीव से पांच इन्द्रिय चाले जीवो की तथा मन सज्ञा वाले जीवो की गणना की जाती है ।
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२- षट् द्रव्य
१' धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय,
३ आकाशास्तिकाय,
- ४ काल द्रव्य,
५ जीवास्तिकाय, और ६ पुद्गलास्तिकाय ' 1