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[व्याख्या कोष
- इन छ. ही द्रव्यों का समूह "पट्-व्य" कहलाता है । इन छ. ही। दुव्यो की सामान्य परिभाषा यथास्थान पर इसी कोश में दे दी गई है।
१-सम्यक्त्व
नव तत्त्वो पर, षट्-दव्यों पर, जिन-वचनो पर, एवं "आत्मा, ईश्वर, पुण्य, पाप" आदि आस्तिक सिद्धान्तों पर पूरा पूरा विश्वास करना ही सम्यक्त्व है !
सम्यक्त्व के साधारण तौर पर दो भेद है.--- . . १. व्यवहार सम्यक्त्व (२) निश्चय सम्यक्त्व ! निश्चय सम्यक्त्व के पाच भेद है:
१ सास्वादन सम्यक्त्व, २ औपशयिक-सम्यक्त्व, ३ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, ४ वेदक सम्यक्त्व और ५ क्षायिकसम्यक्त्व ।
(१) बाह्य लक्षणों को देखकर याने किसी के देव, गुरु और धर्म के प्रति विश्वास को देख कर उसके विश्वास को सम्यक्त्व के नाम से कहना-व्यवहार सम्यक्त्व है।
(२) निश्चित और निश्शक रूप से देव, गुरु और धर्म पर विश्वास होना, अचल और अडोल श्रद्धा होना-निश्चय सम्यक्त्व है।
(३) उपशम सम्यक्त्व से गिरते समय एव मिथ्यात्व का ओर आते समय; जब तक मिथ्यात्व नही प्राप्त हो जाय, तब तक मध्य वर्ती समय में जीव के जो परिणाम होते है-उसे ही सास्वादन सम्यक्त्व कहते है ।
(४) अनन्तानुबधी क्रोध, मान, माया और लोभ, सम्यक्त्व मोहनीय, , मिथ्यात्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय, इन सात मोहनीय प्रकृतियों के उपगम से होने वाले जीव के परिणाम को औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। ।
(५) उपरोक्त सातों प्रकृतियो में से कुछ के उपशम होने पर एव कुछ के क्षक होने पर जो परिणाम जीव के होते है, उसे बायोप्रशमिक सम्यक्त्वकहते हैं ।