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[ व्यास्या कोष
. श्रद्धा के पाच लक्षण है-१ प्रशम, २ सवेग, ३ निर्वेद, ४ अनुकपा, दीर ५. मास्तिकता।
३-श्रावक
जो मनुष्य श्रद्धा के साथ जिन वचनो को सुनता हो, उन पर विश्वास करता हो तथा शक्ति के अनुसार व्रत-नियमो की परिपालना करता हो, और अपनी श्रद्धा को निर्दोप रखता हो, वही श्रावक कहलाता है । श्रावक के १२ अतं और २१ गुण होते है । ४-श्राविका
"श्रावक" शब्द मे उल्लिखित गुणो वाली और वैसी ही श्रद्धा वाली कथा तदनुसार आचरण करने वाली, महिला, "श्राविका" है ।।
-शील
"ब्रह्मचर्य धर्म" शील कहलाता है । मन, वचन, और काया से, शुद्ध और निर्दोप ब्रह्मचर्य पालना ही शील है ।
६-श्रुत-ज्ञान ___ शास्त्रों के सुनने से, विविध साहित्य के पढने से, चिन्तन से मनन से वो ज्ञान प्राप्त होता है, वह श्रुत ज्ञान है । चौदह पूर्वो का ज्ञान भी श्रुत ज्ञान के ही अन्तर्गत है। आज कल का उपलब्ध सपूर्ण ज्ञान, मति ज्ञान और श्रुत मान के ही अन्तर्गत आता है ।
७- शुक्ल-ध्यान , __ सर्व श्रेष्ठ ध्यान, इस ध्यान में केवल विशुद्ध आत्म तत्त्व का और ईश्वर तत्त्व का एव तटस्थ भाव से लोक का गभीर, अनुभव एव चिन्तन मनन होता है । स्थितप्रज्ञ रूप से और अनासक्त भाव से असाधारण सुन्दर विचारों का प्रवाह चलता रहता है, ! उच्च कोटि के महात्मा का ही इस ध्यान का प्राप्ति हो सकती है। इसके ४ सेव कहे गये हैः-१-पृथक्त्व