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व्याख्या कोष ]
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मोहनीय । ___ दर्शन मोहनीय के तीन भेद पहले लिखे जा चुके है । चारित्र मोहनीय के "१६ प्रकार के कषाय और ९ प्रकार के नो कपाय" इस प्रकार कुल २५ भेद होते हैं। १८--मोक्ष
आत्मा का आठो कर्मों से छूट जाना ही और पुन कर्मो से लिप्त नहींहोना ही मोक्ष है । आठो कर्मों के क्षय से आत्मा में सभी प्रकार के मल गुण अपने सर्वोच्च रूप में विकसित हो जाते है । तथा सभी प्रकार के सांसारिक झझट और सभी प्रकार के दुर्गुण हमेशा के लिये आत्मा से अलग हो जाते है । पूर्ण ईश्वरत्व प्राप्ति ही "मोक्ष-अवस्था" है ।
मोक्ष-प्राप्ति अथवा ईश्वरत्व-प्राप्ति प्रत्येक आत्मा का स्वाभाविक अघि-- कार है; तदनुसार हर आत्मा अपने ज्ञान-दर्शन, चारित्र द्वारा माक्ष प्राप्त कर सकती है।
१-यतना
विवेक पूर्वक और सावधानी के साथ जीवन-व्यवहार चलाना, यतना है।। अपने कर्तव्य का ध्यान रखते हुए, अपने उत्तरदायित्व को स्मृति में रखते हुए और अपनी पद-मर्यादा का ख्याल रखते हुए जीवन-व्यवहार चलाना “यतना" है। २-यथाख्यात चारित्र
क्रोध, मान, माया और लोभ; इन चारो कषायो के सर्वथा उपशम होने पर जिस सर्वोच्च चारित्र की प्राप्ति होती है, वह यथाख्यात चारित्र है। ग्यारहवे गणस्थान में वर्तमान आत्मा को औपशमिक यथाख्यात चारित्र होता है और १२ वे, १३ वे; तथा १४ वे गृणस्थान में वर्तमान आत्मा का क्षायिक यथाख्यात चारित्र होता है । पाचो चारित्रो में से यही चारित्र सर्वोच्च और श्रेष्ठ है।