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[ व्याख्या कोष
३-योग-प्रवृत्ति __ मन, वचन और काया की प्रवृत्तियो का सम्मिलित नाम “योग-प्रवृत्ति" है। इनकी शुभ-प्रवृत्ति हो तो "शुभ-याग-प्रवृत्ति" और इनकी अशुभ-प्रवृत्ति हो तो "अशुभ योग-प्रवृत्ति" कही जाती है। ____ योग के मुख्य तीन भेद है.–१ मनो योग, २ वचन योग और ३ काया योग । इनके पुन उपभेद १५ होते है । (१) सत्य मन योग; (२) असत्य मन योग, (३ ) मिश्र मन योग; (४) व्यवहार मन-योग । (१) सत्य भाषा, (२) असत्य भाषा, (३) मिश्र भापा, और (४) व्यवहार भाषा (१)औदारिक योग, ( २ ) औदारिक मिश्र योग, (३) वैक्रिय योग ( ४ ) वैक्रिय मिश्र योग ( ५ ) आहारक योग, ( ६ ) आहारक मिश्र योग (७) कार्मण योग ।
१-रत्न त्रय
सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चारित्र का सम्मिलित नाम • "रत्न-त्रय" है ।
"आत्मा, ईश्वर, पुण्य पाप" आदि मूल भूत सिद्धातो पर पूरा पूरा विश्वास करना और सासारिक-सामग्री को अनित्य और अत में दुख देने वाली विश्वास करना सम्यक् दर्शन है।
"सम्यक्-दर्शन" के अनुसार ही जगत् का तथा आत्मिक-सिद्धान्तो का ज्ञान करना अथवा स्वरूप समझना "सम्यक् ज्ञान" है ।
"सम्यक् दर्शन" और "सम्यक् ज्ञान" के अनुसार ही अपने जीवन का व्यवहार रखना; जीवन का आचरण रखना, तथा इन्ही सिद्धान्तो के अनुसार अपने आचरण का क्रमिक विकास करते हुए सर्वोच्च स्थिति को पहुँचना ही "सम्यक् चारित्र" है।
सम्यक् दर्शन होने पर ही "ज्ञान और चारित्र" की गणना सम्यक् रूप से होती है; अन्यथा-सम्यक दर्शन के अभाव में "मिथ्या ज्ञान और मिथ्या __-चारित्र" समझा जाता है ।