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उ
[ व्याख्या कोप
१-- उपभोग
ऐसे पदार्थ जो एक से अधिक बार भोगे जा सकें, जैसे कि वस्त्र, मकान
आभूषण, आदि ।
२ - उपयोग
""ज्ञान और दर्शन" का सम्मिलित अर्थ । जानने, अनुभव करने, सोचने समझने की शक्ति | आत्मा का मूल लक्षण उपयोग ही है । ३ – उपसर्ग
ग्रहण किये हुए व्रतों के परिपालन के समय में आने वाले हर प्रकार के कष्ट; ये कष्ट चाहे प्राकृतिक हो अथवा देव मनुष्य कृत हों अथवा पशु कृत हो ।
४
- उपाधि
1
(१) कष्ट, क्लेश, अथवा परिग्रह रूप संग्रह ( २ ) पदवी, खिताब |
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१ - ऋषि
ऐसे सत ज्ञानी महात्मा, जो कि अपने ज्ञान वल से और चारित्र वल से भविष्य का ठीक ठीक अनुमान कर सके और दार्शनिक गहन सिद्धान्तों का सही रूप से अनुभव कर सके
क
१ -- क्रोध
चार कपाय मे से पहला कपाय, इसके कारण से आत्मा विवेक शून्य होकर वेभान हो जाता है । वोलने में और व्यवहार में पूरा जाता है | अपना भान भूलकर अविवेक के साथ क्लेशकारी बोलना ही क्रोध है ।
पूरा अज्ञान छा तथा कटु वचनः