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व्याख्या कोष]
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११-आलोचना
ग्रहण किये हुए व्रतों में दोष लग जाने पर; भूल भरी बातें हो जाने पर, व्रत के विरुद्ध आचरण हो जाने पर गुरु के समक्ष अथवा आदरणीय बन्धु के समक्ष ईश्वर की साक्षी से दोषों का, भूलो का, विरोधीआचरण को स्पष्ट रीति से वयान करना और क्षमा मागना । १२-आश्रव ___मन, वचन और काया की प्रवृत्ति से "कर्म" नाम से वोले जाने वाले सूक्ष्म से सूक्ष्म पुदगल-वर्गणाओ का आत्मा के साथ दूध पानी की तरह सवधित होने के लिये आत्म-प्रदेशों की ओर आना आश्रव है । शुभप्रवृत्ति से शुभ-आश्रव होता है और अशुभ-प्रवृत्ति से अशुभ-आश्रव होता है। १३-आसक्ति ___ मोह को, ममता को, गृद्धि-भाव को आसक्ति कहते है । किसी पदार्थ के प्रति मूच्छित होना, अपने अच्छे कामो का फल चाहना। १४-आस्तिकता - पाप, पुण्य, पुनर्जन्म, आत्मा, ईश्वर, दया, दान, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि सिद्धान्तो में और धार्मिक क्रियाओ में पूरा पूरा विश्वास रखना। १५-आसातना
अविनय करना, अनादर करना; उपेक्षा करना।
१-इच्छा
इन्द्रियो और मन की अतृप्त भावना । तृष्णा मय आकांक्षा । विषय और विकार के प्रति रुचि होना । २-इन्द्रिय
नांख, कान, नाक, मुह और गरीर-इन पाचो का सम्मिलित नाम इन्द्रिय है।