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व्याख्या कोष ]
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२-कर्म
क्रोध, मान, माया और लोभ के कारण प्रात्मा के प्रदेशो पर जा एक प्रकार का सूक्ष्म से सूक्ष्म-परमाणुओ का पटल दूध पानी की तरह छा जाता है और आत्मा को मलिन सस्कारो से आवद्ध कर देता है, ऐसे पुद्गलो से बने हुए वर्गणाओ का समूह । ३-कम-योगी
ज्ञानी और भक्त होने पर भी जो निरन्तर विना किसी भी प्रकार के फल की इच्छा किये अपने कर्तव्य मार्ग पर आरूढ रहे तथा जीवन को कर्मण्यता मय ही बनाया रक्खे, ऐसा पुरुष । ४-कषाय
क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्षा, द्वेप आदि की भावनाएँ कपाय है । कषाय के १६ भेद है-अनन्तानुवंधी क्राघ, मान माया, लोभ
अप्रत्याख्यानावरण " " " " प्रत्याख्यानावरण " " " " संज्वलन
" " " , " ५-कामना 1 इच्छा, आकाक्षा, सासारिक भावना । ६-काम-मोग
स्त्री-पुरुष सबंधी मैथुन-भावनाएँ । ब्रह्मचर्य को तोडने सबंधी इच्छाएँ । ७-कायोत्सर्ग
मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को रोक कर चित्त की वत्ति को किसी एक पर ही केन्द्रित करना, चित्त की वृत्ति को सुस्थिर करना ।
८-काय-गुप्ति
शरीर के कामो को और प्रवृत्तियो को अशुभ मार्ग से हटा कर शुभमार्ग में लगाना, एव प्राणीमात्र के हित मे शारीरिक-शक्तियो को जोड़ना।