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सूक्ति-सुधा]
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इसके विपरीत-सद्गुणो से रहित एव दुर्गुणो से ग्रसित ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुआ भी वास्तव मे ब्राह्मण नही है । इसी प्रकार जो जनता की रक्षा करे, परोपकार के लिए जीवन न्यौछावर करे, वही क्षत्रिय है। गुणो के अभाव में क्षत्रिय-कुल में उत्पन्न हुआ भी वास्तविक क्षत्रिय नही कहा जा सकता है। आचरण-अनुसार वर्णव्यवस्था है।
वईसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ . कम्नुणा।
उ०, २५, ३३ टीका-कर्म से ही, आचरण से ही वैश्य होता है, और कर्म से ही शूद्र होता है। जो कृषि-कर्म, पशु-पालन और व्यौपार करता है, वही सच्चा वैश्य है, फिर चाहे वह किसी भी कुल अथवा वर्ण मे उत्पन्न हुआ हो।
इसी प्रकार जो शिल्प-कला और सेवा-कार्य में लगा हुआ हो, वही शूद्र है । फिर चाहे जन्म से और वर्ण से कोई भी हो।
जैन धर्म गुणो के आधार से और आचरण के आधार से वर्णव्यवस्था का विधान करता है ।
रुढि के आधार से और जाति-कुल के आधार से जैन धर्म वर्ण 'व्यवस्था को नही मानता है ।
। असंबिभागी न हुतस्ल मुक्खो।
द०, ९, २३, द्वि. उ, . टीका--असंविभागी को, स्वार्थी को, दूसरों के सुख दुख का, हित-अहित का ख्याल नहीं करने वाले को मोक्ष-सुख प्राप्त नही हो सकता है। उसे कदापि शाश्वत् सुख प्राप्त नही हो सकता है। .