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सूक्ति-सुधा ] .
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बालाण मरणां असई भवे ।
उ०, ५,३ टीका-मों की, अज्ञानियों की और भोगियो की मृत्यु बारबार होती है । उनको अनेक जन्म-मरण करने पड़ते है।
. . ( ४ ) ... लुष्पन्ति बहुसो मूढा, संसारमित अणन्तए।
उ., ६,१ टीका-मूढ आत्माएं यानी विषय और विकारो में ही मूच्छित रहने वाली आत्माऐं, इस दुःख पूर्ण ससार में अनन्त बार जन्म और मरण के चक्कर में फंसती है और निरन्तर दुःख ही दुख भोगती है।
(५). अकोविया दुक्ख ते न स्तुति, . - - सउणी पंजरं जहा।
सू०, १, २२, उ, २ . . . . टीका-जैसे पक्षी पीजरे को नहीं तोड़ सकता है, वैसे ही अकोविद यानी भोगो में मूच्छित प्रागी, आसक्त-प्राणी भी कर्म-बन्धन को नही तोड़ सकते है। मूढ आत्माएँ तो निरन्तर कर्मों के जाल में फंसती ही रहती है। " ,
....... - न कम्मुणा कम्म खति बाला। - । - ... . . . . .
सू., १२, १५ . . . . . . .... - टीका-अज्ञानी जीव तृष्णा और भोगो में फंसे- -रहते है। इस., लिये वे निरन्तर पाप का ही आश्रय करते रहते है और अपने कर्मों; का क्षय नही कर सकते है । निरन्तर आश्रव होने से निर्जरी का;