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बाल-जन-सूत्र
बाल भावे अप्पाणं नो उवदसिज्जा।
आ०, ५, १६४, उ,५ टीका-अन्य साधारण पुरुपो द्वारा आचरित मार्ग पर अपनी आत्मा को नही लगाना चाहिये, यानी जन-साधारम के मार्ग पर अपने जीवन को नही खेचना चाहिये । वल्कि जिस मार्ग को ऋषिमुनियो ने और सत-महात्माओ ने श्रेष्ठ बतलाया है उसी पर चलना; चाहिये । साधारण आदमियो का ज्ञान और आचरण सामान्य कोटि का, एवं इन्द्रिय-सुख प्राप्ति का होता है। साधारण आदमी तत्त्व के तह तक कैसे पहुँच सकते है ? अतएव आदर्श मार्ग का अवलंचन करो।
(२) बाले य मन्दिए मढे, बझई मच्छिया व खेलस्मि ।
उ०, ८, ५, टीका-~वाल यानी आत्मा के गुणो की उपेक्षा करने वाला, __ मंद यानी हित और अहित का विवेक नही रखने वाला, मूढ यानी
काम भोगो में और इन्द्रिय-विकारो मे मूच्छित रहने वाला, ससारचक्र में इस प्रकार फस जाता है, जैसे कि मक्खी नाक और मुख के ! मल में यानी श्लेष्म में फंसकर जीवन खत्म कर देती है। इसी प्रकार भोगी आत्मा भी अपने सभी गुणो का नाश कर देती है।