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सूक्ति-सुधा ]
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जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं।
सू०, २, २, उ, २ टीका-जो पुरुष दूसरे का तिरस्कार करता है, जो दूसरे का अपमान करता है, वह ससार में चिर काल तक घूमता है, वह अनेक-जन्म और मरण करता है। .
(१३) इंखिणिया उ पाविया।
सू०, २, २, उ, २ टीका--पर निन्दा साक्षात् पाप की प्रति-मूत्ति है, पाप की निधि ही है।
(१४) . दुस्सील पडिपीए मुहरी निक्कसिज्जई।
उ०, १, ४ टीका-दुराचारी, प्रतिकूल वत्ति वाला और वाचाल प्रत्येक स्थान पर धिक्कारा जाता है । वह दुत्कारा जाता है । वह बहिष्कृत किया जाता है।
(१५.) पडिणीप असबुद्धे अविणीए ।
. 'उ०. १, ३. टीका व्यवहार से और मर्यादा से प्रतिकूल वृत्ति वाला, तथा समझदारी यानी योग्यता नही रखने वाला अविनीत कहलाता है। 'बह विनय-शून्य कहा जाता है ।
वेराणुयद्धा नरयं उबैति ।
उ०, ४, २ .