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सूक्ति-सुधा.]
[२४३ : टीका-अविनीत आत्माएँ-विकथा, कलह, हास्य,व्यसन, निद्रा, प्रमाद, आज्ञा-विराधना झादि दुर्गुणो में ग्रस्त आत्माऐ दु.ख, रोग, वियोग, अपयश, अकीर्ति, विपत्ति, दरिद्रता, दुर्गति आदि अनिष्टः और अप्रिय सयोगो को प्राप्त करती हुई देखी जाती है।
. . . (५) ।
चुज्झइ से अविणी अप्पा, ,
कहुँ सोअगयं - जहा।
द०, ९, ३, द्वि, उ - टीका-जैसे समुद्र मे सूखी लकड़ी का टुकड़ा कही का कही बह जाता है और लापता हो जाता है, वैसे ही अविनीत पुरुष भी धर्म-भ्रष्ट होकर ससार-समुद्र मे, डूब जाता है। अनन्त जन्ममरण की वृद्धि कर लेता है। . .
(६).. ' - न मावि मुक्खो गुरू, हीलणाए। __.. . द०, ९, ७, प्र, उ टीका-गुरु की हीलना करने से, गुरु का अविनय करने से, उन की आज्ञा का भंग करने से, मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती है। . .. - . (७)
, प्रासयण नत्थि मुक्खो।
_____द०, ९, ५, प्र, उ टीका-आसातना मे, ग्रानी दृढ श्रद्धा के अभाव में, अविनय __ में और आज्ञा-भग में मोक्ष नही रहा हुआ है। विकार-पोषण में
और विकथा मे मोक्ष का अभाव है। ।
तिन्य जज गुणवं, विररिज्जासि।
'६०, ५, १२ , दि ...