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कन्हैया लाल लोढा, एम०ए० सी-ट, नई अनाज मण्डी बांदपोल, जयपुर - 8 अनिष्ट प्रवृत्ति-सूत्र
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( २ )
दुक्खो इद्द दुक्कडेणं । सू०, ५, १६, उ, १
( १ ) संतप्पती साहुकम्मा ।
सू०, ५, ६, उ, २
टीका --नीच कर्म करने वाला पुरुष महान् वेदनाऐं और ताप भोगता है । पाप और ताप का स्वाभाविक संबंध है ।
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टीका - दुष्कृत से, इन्द्रिय-भोगो से मन की वासनाओं से और तृष्णा से, इस लोक में भी अर्थात् इस जीवन में भी दुख प्राप्त होते है और मरने पर भी दुःख प्राप्त होते है ।
( ३ )
जे गारवं होइ सलोग गामी, पुणो पुणो विपरियासुवेति ।
सू०, १३१२
अपनी स्तुति की यश:ससार में जन्म-मरण
टीका - जो अभिमान करता है, या जो कोत्ति की इच्छा रखता है, वह वार वार यदि दुःखों को भोगता है, वह अनिष्ट और विपरीत सयोगों को प्राप्त करता है, एवं तदनुसार नाना दुःखो का वह भागी बनता है। ( ४ )
अविणी यादीसंति दुहमेहना । ब०, ९, ७, द्वि, उ,
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