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सूक्ति-सुधा]
२०९ टीकाबहुत विद्वान् होने पर भी विद्या का अभिमान नहीं करे । अपने श्रुत-ज्ञान के प्रति अहकार-भावना नही लावे। अहकारी का सदैव सिर नीचा ही रहता है,। . .
. (२१) . इमा पया वहु माया, मोहे पाउडा ।
सू०, २, २२, उ, २ टोका-भौतिक-सुख की मान्यता वाली आत्माऐ माया आदि कपाय से युक्त होती है । और मोह से ग्रसित होती है । ऐसी आत्माऐ अनन्त काल तक,संसार मे परिभ्रमण करती रहती है।
(२२) - छन्नं च पसंस णो करे, , न य उक्कोस पगास माहो ।
सू०, २, २९, उ, २ टीका-विवेक शील पुरुष, छन्न यानी अभिप्राय को छिपाने रूप माया न करे। प्रशस्य-यानी सभी ससारी आत्माओ में रहने वाला लोभ भी न करे। उत्कर्प यानी जन साधारण को विवेक हीन कर देने वाला जो अभिमान है; उसको भी स्थान न दे। इसी प्रकार प्रकाश यानी आत्मा के स्वभाव' को विकृत रूप से पेश करने वाला जो क्रोध हैं, उसको भी तिलांजली दे दे। “कषाय मुक्ति किल मक्ति रेव" यही सिद्धात आदर्श है।
(२३ ) 1 , अहे वयइ कोहेणं, :
माणेणं अहमा गई ।
- टीका क्रोध से अधोगति मे जाता है और मान से नीच-गति की प्राप्ति होती है। .