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________________ सूक्ति-सुधा ] ( १२ ) माया गई पडिग्धाओ, लोभामो दुहओ भयं । उ०, ९,५४ टीका - माया से अच्छी गति का नाश होता है, और लोभ से दोनो लोक में भय पैदा होता है । ( १३ ) पेज्जवत्तिया मुच्छा दुविहा, माए चैव लोहे चेव । : ठाणा, २, रा, ठा, उ, ४, १३ टीका - राग यानी मूर्च्छा और राग जनित आसक्ति दो कारणों से हुआ करती है १ माया से और २ लोभ से । -: [.२०७ ( १४ ) मायं च वज्जएं सया । उ०, १, २४ टीका—माया का. कपट का सदैव परित्याग करते रहना चाहिए 'क्योकि माया आत्म - विकास के मार्ग में शल्य समान है, काटे के समान है | साया मैत्री का और सहृदयता का नाश करने वाली है । ( १५ ) जे इह मायाइ मिज्जई, श्रागता गन्भाय णंतसो । सू, २, ९, उ, १ टीका - जो पुरुष यहाँ पर माया आदि कषाय का सेवन करता है, कपट क्रियाओं में ही सुख मानता है, उसे अनन्त बार जन्म-मरण - धारण करने पड़ते है ! उसे अनेक वार गर्भ में आने के दुःख उठाने पड़ेगे ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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