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सूक्ति-सुधा]
टीका-कषाय अर्थात् क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों जाज्वल्यमान अग्नि है, इनको गात करने के लिये श्रुत-शास्त्र का और सात्विक साहित्यका अध्ययन, पठन-पाठन, मनन-चिन्तन ही शक्तिशाली जल है। ब्रह्मचर्य और मर्यादा पालन कषाय-अग्नि को शांत कर सकता है। तथा बारह प्रकार का वाह्य और आभ्यतर तप भी कपाय-अग्नि को बुझा सकता है ।
चत्वारि वमे सया कसाए ।
- दे०, १०, ६ टीका-सदैव चारों कषायो का, कोध, मान, माया और लोभ का परित्याग करते रहना चाहिये। क्योकि कषाय से मुक्ति होगी, तभी ससार से भी मुक्ति प्राप्त हो सकेगी।
वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हिय मप्पणो।
- द०, ८, ३७ टीका--क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चारो दोषो को छोड' दो। यदि अपना हित चाहते हो तो इनका नाश कर दो। कषायमुक्ति ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है, यह नहीं भूलना चाहिये।
(७) चत्तारि एए कसिणा कलाया, सिंचिंति मूलाई पुणब्भवस्स।
द०,८,४० टीका-ये चारों कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ, पुनर्भव की अर्थात् जन्म-मरण की जड़े सीचते रहते है। इन कषायो केवल से ही अनन्त ससार की वृद्धि होती रहती है।