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कषाय-सूत्र
छिदाहि दोसं विणएज्ज राग।
द०, २, ५, टीका--द्वेप, अरति और ईर्षा को छोड दो। राग, मोह और आसक्ति का विनाश कर दो।
(२) गगस्स हेउं समणुन्न माहु, दोसस्स हे अमणुन्ना महु ।
उ०, ३२, ३६ टीका--राग का कारण आसक्ति भावना है और द्वेप का कारण “घृणा-भावना है। इस प्रकार राग और द्वेष ही विश्व-वृक्ष है । ससार भ्रमण के मूल कारण है ।
राग होला दओ तिव्वा. नेह पासा भयंकरा ।
उ०, २३, ४३ टीका-रागद्वेष आदि कषाय रूपी पाश और तीव्र मोह रूपी पाश बडी ही भयकर है । मोह, माया और ममता पाश रूप ही है, जाल रूप ही है । ससारी आत्माएँ इसी जाल में फंसी हुई है। समर्थ और स्थिर समाधि वाली आत्माएँ ही इस पाश से मुक्ति पा सकती है
कसाया अग्गियो कत्ता, सुय सील तवो जल।
उ०, २३, २