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[ अनित्यवाद-सूत्र टीका-जो पुरुष रूप मे और स्त्री-सौदर्य में तीव्र मर्छा रखता है वह अकाल मे ही विनाश को प्राप्त होता है । वह घोर दुर्गति का भामी बनता है।
(१९) गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ।
उ., ३२, ५८ । टीका---गध रूप घ्राण-इन्द्रिय के भोग में फसे हुए मनुष्य के लिये कैसे सुख प्राप्त हो सकता है ? कव सुख प्राप्त हो सकता है ? क्योकि इन्द्रियाँ तो कभी तृप्त होती ही नहीं है, इनकी तृष्णा तो उत्तरोत्तर बढती ही चली जाती है। .. ,
रसेस्सु जो गिदि मुवेइ तिव्वं :
'(२०)
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___, ... ; , अकालिय पावइ स विणासं।
उ०, ३२, ६३ टीका-जो प्राणी रस में, यानी जिह्वा के भोग में तीव्र गद्धि भावना रखता है, महती आसक्ति रखता है, तो ऐसा प्राणी अनिष्ट एव नीच कर्मों का उपार्जन करता है और , अकाल मे ही मृत्यु को प्राप्त होता है।
, ( २१ ) , , फासेसु जो गिद्धि मुवेइतिव्वं, अकालियं पावर से विणासं।'
उ०, ३२, ७६ टीका-जो प्राणी स्पर्श इन्द्रिय के भोगो में तीव्र आसक्ति रखता है, जो भोगो में ही तल्लीन है, वह अकाल मे ही विनाश को प्राप्त होता है।