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सूक्ति-सुधा]
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(७) मल्लीण गुत्तो निसिए।
द०, ८, ४५, टीका-सदैव मन और इन्द्रियो को वश में रखने वाला बने । वचन, मन और काया को उपयोग के साथ मर्यादा में रखने वाला बने। उठने, बैठने आदि की क्रियाऐ मर्यादा वाली और विवेक वाली हो । .
(८) गुत्ते जुत्तं सदा जए. आय परे ।
सू०, २, १५, उ, ३ टीका-मन, वचन और काया को विषय, कषाय और भोगउपभोग से हटाते हुए सदैव स्व और पर के कल्याण के लिये यत्न करते रहना ही मानवता है।
। ' आयाग गुत्त वलया विमुक्के। , .
. सू०, १२, २२ टीकाकर्तव्य-निष्ठ पुरुष मन, वचन और काया को अपने वश मे रक्खे, इन्हे स्वच्छंद-रीतिः से नहीं विचरने दे। जीवन में माया-कपट को स्थान नही दे। मायाचार स्व-कल्याण और परकल्याण का विघातक है। इसलिये कल्याण की भावना वाला योगा पर सयम रखता हुआ अमायावी होकर जीवन व्यतीत करता रहे।
अगुत्ते अणाणाए।
आ०१, ४३, उ, ५ टीका--जो मन, वचन और काया पर नियत्रण नही रखता है, इन योगो द्वारा अशुभ प्रवृत्तियो का सेवन करता है, वह भगवान की आज्ञा का आराधक नहीं है, किन्तु विराधक है।