________________
१८८]
। अनित्यवाद-सूत्र
(४)
एगग्ग मसंनिवेसण याए,
चित्तनिरोह करे।
उ०, २९, २५वा, ग टीका-मनको एकान करने से, चित्तको एक ही शुभ विचार ‘पर स्थिर करने से अव्यवस्थित चित्तवृत्ति . और अस्थिर चित्तवृत्ति से छुटकारा मिलता है । चित्त की समाधि होती है। और इससे मनोवल बढता है, जिससे कर्मण्यता, निर्भयता तथा कार्यकुशलता आदि सद्गुणों की वृद्धि होती है।
(५) मणो साहस्सिओ भीमो, दुटुस्सो परिधावई।
उ०, २३, ५८ टीका-यह मन ही एक प्रकार का बड़ा दुस्साहसिक, भयकर और दुष्ट घोड़ा है, अनीति मार्ग पर दौड़ने वाला विनाशकारी घोड़ा है । यह रात और दिन सदैव स्वच्छद होकर विषयो के मार्ग पर दौडता रहता है। इस मन रूपी घोड़े पर नियन्त्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है।
(६). मण गुत्तो वय गुत्तो काय गुत्तो, जिंइदियो जावज्जीवं दढव्वओ।
उ०, २२, ४९ टीका-मनको गोपकर, वचन को गोपकर, जितेन्द्रिय होकर, यावत् जीवन तक व्रत मे और धर्म मार्ग मे दृढ रहना चाहिये । धर्म मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिये ।