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सूक्ति-सुधा]
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(२८) एत्थोवरए मेहावी सव्वं, . पावं कम्मं झोसइ।
आ०, ३, ११३, उ, २. टीका-जो मेधावी पुरुष, जो तत्त्वदर्शी पुरुष भगवान् के वचनो पर स्थित है, भगवान् के वचनो पर श्रद्धा शील है और धर्म-मार्ग पर आरूढ है, ऐसा पुरुप अपने सभी पाप-कर्मो का क्षय कर डालता है।
( २९ ) न या वि पूर्य गरहं च संजए।
उ०, २१, १५ टीका-सयमी पुरुप और आत्म-कल्याणी पुरुष, अपनी निंदास्तुति, तिरस्कार अथवा पूजा की तरफ चित्त वृत्ति को चचल नही करे। सम तोल चित्त-वृत्ति ही समाधि का प्रमुख लक्षण है।
(३०) मेरुव वापण अकम्पमाणो, परीसहे पायगुत्ते सहिज्जा।
उ०,२१, १९ टीका--सयम निष्ठ और आत्मार्थी पुरुष सदैव कछुए के समान इन्द्रियो को गोप कर, वायु के वेग से कम्पायमान नही होने वाले मेरु पर्वत की तरह दृढ रह कर कल्याण-मार्ग में आने वाले परिषदों को-उपसर्गों को और कठिनाइयो को सहन करता रहे।
(३१) अणुनए नावणए महेसी।
उ०, २१, २० का-महर्षि और महात्मा पुरुष, न तो हर्ष से अभिमानी हो