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[ महापुरुष- सूत्र
टीका - धीर पुरुष अर्थात् कठिनाइयाँ आने पर भी कर्त्तव्यमार्ग से पतित नही होने वाले महापुरुष - बंधनो से मुक्त हो जाते ह्वै । वे ससार से शीघ्रही पार होकर मुक्त हो जाते है ।
( २५ )
सव्वेसु काम जाए, पासमाणो न लिपई ताई । उ०, ८, ४
टीका - आत्मार्थी पुरुप ससार के दुःखो को देखता हुआ और संसार की विषमताओ का विचार करता हुआ काम भोगो मे लिप्त च्हीं होता है । वह विषयो मे मूच्छित नही होता है ।
( २६ ) भुजमाणो यमेावी, कम्मणा नोवलिप्पs |
सू०, १, २८, उ, २
टीका - जिसके अन्त करण में राग-द्वेष नही है, जो अनासक्त हैं, जो निर्ममत्व शील है, ऐसा ज्ञानी आत्मा शरीर - निर्वाह के लिये विविध रीति से आहार करता हुआ एव जीवन- व्यवहार चलाता हुआ भी कर्मो से लिप्त नही होता है । वह संसार में अधिक जन्मरण नही करता है ।
( २७ )
मोहावी अपणो गिद्ध मुद्धरे । सू., ८, १३
टीका - बुद्धिमान् पुरुष और आत्मार्थी पुरुष अपनी ममत्व बुद्धि को, अपने आसक्ति-भाव को हटादे, इन्हें खत्म कर दे और निर्ममत्व होकर, अनासक्त होकर विचरे । यही कल्याण - मार्ग है | यही महापुरुषो का पथ है |