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सूक्ति-सुधा]
[.१६७ के प्रति आसक्ति नही रखने वाला है, ऐसा पुरुष ही विनीत है, मोक्ष का अधिकारी है।
(२१ ) पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पिन विज्जई।
उ०, ९, १५ टीका-सात्विक विचारो वाले पुरुष के लिये न कोई प्रिय है और न कोई अप्रिय । उसकी दृष्टि में तो सभी समान है। किसी पर भी उसका राग अथवा द्वेष नही है, चाहे कोई उसकी निन्दा करे यह स्तुति करे।
(२२) किरियं चरो अए. धीरो।
उ०, १८, ३३ टीका-धीर पुरुष, आत्मार्थी पुरुप, इन्द्रियो का दमन करने वाला पुरुष सत् क्रिया में रुचि रक्खे, नैतिक और धार्मिक क्रियाओ के प्रति आस्तिकता रक्खे । चरित्र के प्रति दृढ़ श्राद्धावान् हो ।
(२३) धोरेय सीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खारिय चरन्ति ।
उ०, १४, ३५ टीका-तप-प्रधान जीवन वाले तपस्वी और धर्म धुरन्धर धीर पुरुष ही भिक्षा-चर्या और मुनिवृत्ति का अथवा मोक्ष मार्ग का अनुसरण कर सकते है । निर्बल पुरुषो में, इन्द्रियो के दास पुरुषो में यह शक्ति नही हो सकती है।
(२४) धीरा बंध गुरुमुक्का।
सू०, ३, १५ उ, ४