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ह महापुरुष-सूत्र
चउक्कसायावगए स पुज्जो।
द०, ९, १४, तृ, उ, टीका--जो पुरुष चारो , कषायो से-क्रोध, मान, माया और लोभ से रहित है, वही कर्म योगी है। और वही पुरुष पूजनीय है।
संतोल पाहन्न रए स पुज्जो।
द०, ९, ५ तृ, उ टीका--जो उपलब्ध यानी प्राप्त सामग्री में ही संतोष कर लेता है, और इच्छा तृष्णा को नहीं , बढ़ाता है, पर-धन को धूल के समान और पर-वनिता को माता-वहिन के समान समझता है, वही पूजनीय है।
अणासए, जो उ सहिज्ज, कंटए स पुज्जो।
. द०, ९, ६, त, उ,, टीका-विना किसी आशा-तृष्णा के, एवं निष्काम भाव से जो संकट सहता रहता है, और स्व-पर-कल्याण में रत रहता है, वही पूजनीय है।
(१२) जो राग दोसेहिं समोस पुज्जो.।
द०, ९, ११, तु, उ, • टीका-~-जो पुरुष निन्दा स्तुति मे, मान-अपमान में, इष्ट-अनिप्ट के संयोग-वियोग में समान भावना रखता है, तथा हर्ष शोक. से दूर रहता है, वही पूजनीय है ।