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सूक्ति-सुधा ]
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मूर्ख तो भोगों में फस जाता है और अत में जाल में फसी हुई मछली के समान दुख पाता है ।
( ५ ) मेधाविणो लोभ मयावतीता ।
सू०, १२, १५
टीका
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- बुद्धिमान् पुरुष लोभ से दूर रहते है । ज्ञानी तृष्णा के जाल में नहीं फसते है । और इस प्रकार अपनी वीतराग भावना की वृद्धि करते रहते है |
( ६ )
अंताणि धीरा सेवंति, तेगा अंतकरा इह | सू०, १५, १५
टीका -- महापुरुष विषय और कषाय का अन्त कर देते हैं, इसलिये वे ससार का भी अत कर देते हैं, जहाँ त्रिषय और कषाय है, वही ससार है; और जहा ये नही हैं, वही अमर शान्ति है ।
.- ( ७ )
से हु चक्खू मणु हसाणं, जे कंखाए य अंतर |
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- सू०, १५, १४
टीका-जिस पुरुष को भोग की तृष्णा नही है, वहीं पुरुष सब मनुष्यो को नेत्र के समान उत्तम मार्ग दिखाने वाला 1 '( ८ )' जिदिए जो सहर, स पुज्जो
द०, ९,८, तृ, उ
टीका -- जितेन्द्रिय होकर, स्थित प्रज़ होकर, कर्म योगी होकर जो दूसरो के द्वारा बोले हुए दुष्ट और अनिष्ठ वचनों को भी अका-, रण सहता है, तथा सत्कार्य म मलग्न रहता है, वही पूजनीय है
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