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महापुरुष-सूत्र
सड्ढी आणाए मेहावी ।
आ०, ३, १२५, उ, ४ टीका-जो भगवान की आज्ञा में-वीतराग के आदेश में विश्वास करता है, ज्ञान, दर्शन और चारित्र के प्रति आस्था रखता है, वही मेधावी है । वही तत्वदर्शी महापुरुष है।
(२) विणियहृति भोगेसु, जहा से पुरिसुत्तमो।
द०, २, ११ टीका-जो भोगो से दूर रहते है, वे ही वास्तव में पुरुषोत्तम हैं। वे ही श्रेष्ठ और महापुरुष है।
पंडिया पवियक्षणा विणियट्टन्ति भोगसु।
उ०, ९, ६२ टीका-पडित तथा विचक्षणपुरुष यानी प्रतिभा सपन्न महापुरुष भोगो से निवृत्ति लेते है 1 वे भोगो में कभी भी नही फसते है।
(४) बुद्धो भोगे परिचयई।।
उ०, ९,३ टीका-बुद्धिमान् पुरुप, विवेकी पुरुष ही भोगो को छोड़ता है।