________________
सूक्ति-सुधा]
[१६५
(१३) गुरुं तु नासाययई स पुज्जो।
द०, ९, २, त, उ, टीका-जो अपने गुरु की यानी अपनी से ज्ञान-वृद्ध की, आय वृद्ध की, चारित्र वृद्ध की, गुण वृद्ध की आशातना नहीं करता है, अविनय नही करता है, अभक्ति नहीं करता है, दुर्भावना नही करता है । वही पूज्य है-वही आदर्श है।
( १४ ) सुरा दृढ़ परक्कमा ।
उ०, १८, ५२ ___टीका-जो शूरवीर होते है, जो प्रबल पुरुष होते है, वे ही धर्म मार्ग मे और सेवा मार्ग में दृढ तथा पराक्रम शील और पुरुषार्थी होते है।
(१५) परिसह रीऊ दंताधूअ मोहा जिइंदिया।
द०, ३, १३ टीका-जो परिषह-उपसर्ग रूपी शत्रुओ को जीतने वाले है, मोह रूपी पर्वत को भेदने वाले है और इन्द्रिय रूपी घोड़ों को वश में करने बाले है, वे ही महर्षि है।
संजया सुसमाहिया।
द०, ३, १२ टीका-जो वास्तव में सयमी हैं, वे सदैव इन्द्रियो और मन को ज्ञान-ध्यान और समाधि में ही लगाये रखते है ।
(१७) अवि अप्पणो वि देहमि, नायरंति भमाइये।
द०, ६, २२