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[श्रमण-भिक्षु-सूत्र
( ५२ ) अणगार चरित्त धम्म दविहे, ' सराग सजमे चेव, वीयराग सजमे चेव । ।
ठाणा, २, रा, ठा, उ, १, २५ टोका--अणगार चारित्र अथवा साधु धर्म भी दो प्रकार का है --१ सराग सयम और २-वीतराग सयम । - सराग सयम मे गरीर, धार्मिक-उपकरण, यश कीति, सन्मान आदि के प्रति ममत्व-भाव रहता है, जब कि वीतराग मयम में ममता, आसक्ति आदि का सर्वया लोप हो जाता है। ...,
मुणी मोर्ण समायाय,
धणे कम्म सरीरगं ।' - - - . . . आ०, २, १००, उ, ६ .
टीका--आत्मार्थी मुनि-मौन को ग्रहण कर, अपनी वृत्तियो को नियत्रित कर, सात्विक-मार्ग पर उन्हे सयोजित कर, अपने पूर्व सचित कर्मो का और, मानसिक अशुभ सस्कारो - का, तथा अनिष्ट वासनामो का क्षय करता रहता है । अथवा इन्हे क्षय करे ।
चत्तारि आयरिया, आमलंग महुरफल समाणे, मुदियामहुर फल समाणे खीर महुर फल समाणे,
खंड महुरफल समाणे।
ठाणा०, ४ था, ठा०, उ, ३, १३ । टीका-आचार्य चार प्रकार के होते है--१-आवले के रस के समान शब्द-प्रयोग में उपालभ आदि रूप खटास-मिटास-पद्धति का प्रयोग